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जैविक खेती

किसानों के लिए जैविक खेती करना बेहद फायदेमंद, जैविक उत्पादों की बढ़ रही मांग

किसानों के लिए जैविक खेती करना बेहद फायदेमंद, जैविक उत्पादों की बढ़ रही मांग

जैविक खेती से कैंसर दिल और दिमाग की खतरनाक बीमारियों से लड़ने में भी सहायता मिलती है। प्रतिदिन कसरत और व्यायाम के साथ प्राकृतिक सब्जी और फलों का आहार आपके जीवन में बहार ला सकता है।

ऑर्गेनिक फार्मिंग मतलब जैविक खेती को पर्यावरण का संरक्षक माना जाता है। कोरोना महामारी के बाद से लोगों में स्वास्थ्य के प्रति काफी ज्यादा जागरुकता पैदा हुई है। बुद्धिजीवी वर्ग खाने पीने में रासायनिक खाद्य से उगाई सब्जी के स्थान पर जैविक खेती से उगाई सब्जियों को प्राथमिकता दे रहा है।

बीते 4 वर्षों में दो गुना से ज्यादा उत्पादन हुआ है

भारत में विगत चार वर्षों से जैविक खेती का क्षेत्रफल यानी रकबा बढ़ रहा है और दोगुने से भी ज्यादा हो गया है। 2019-20 में रकबा 29.41 लाख हेक्टेयर था, 2020-21 में यह बढ़कर 38.19 लाख हेक्टेयर हो गया और पिछले साल 2021-22 में यह 59.12 लाख हेक्टेयर था।

कई गंभीर बीमारियों से लड़ने में बेहद सहायक

प्राकृतिक कीटनाशकों पर आधारित जैविक खेती से कैंसर और दिल दिमाग की खतरनाक बीमारियों से लड़ने में भी मदद मिलती है। प्रतिदिन कसरत और व्यायाम के साथ प्राकृतिक सब्जी और फलों का आहार आपके जीवन में शानदार बहार ला सकता है।

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भारत की धाक संपूर्ण वैश्विक बाजार में है 

जैविक खेती के वैश्विक बाजार में भारत तेजी से अपनी धाक जमा रहा है। इतनी ज्यादा मांग है कि सप्लाई पूरी नहीं हो पाती है। आने वाले वर्षों में जैविक खेती के क्षेत्र में निश्चित तौर पर काफी ज्यादा संभावनाएं हैं। सभी लोग अपने स्वास्थ को लेकर जागरुक हो रहे हैं। 

जैविक खेती इस प्रकार शुरु करें 

सामान्य तौर पर लोग सवाल पूछते हैं, कि जैविक खेती कैसे आरंभ करें ? जैविक खेती के लिए सबसे पहले आप जहां खेती करना चाहते हैं। वहां की मिट्टी को समझें। ऑर्गेनिक खेती शुरू करने से पहले किसान इसका प्रशिक्षण लेकर शुरुआत करें तो चुनौतियों को काफी कम किया जा सकता है। किसान को बाजार की डिमांड को समझते हुए फसल का चयन करना है, कि वह कौन सी फसल उगाए। इसके लिए किसान अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र या कृषि विश्वविद्यालयों के विशेषज्ञों से मशवरा और राय अवश्य ले लें।

वर्मीकम्पोस्ट यूनिट से हर माह लाखों कमा रहे चैनल वाले डॉक्टर साब, अब ताना नहीं, मिलती है शाबाशी

वर्मीकम्पोस्ट यूनिट से हर माह लाखों कमा रहे चैनल वाले डॉक्टर साब, अब ताना नहीं, मिलती है शाबाशी

इतना पढ़ लिख कर सब गुड़ गोबर कर दिया, आपने यह बात तो सुनी ही होगी। लेकिन मेरी खेती पर हम बात करेंगे ऐसे विरले किसान की, जिनके लिए गोबर अब कमाई के मामले में, गुड़ जैसी मिठास घोल रहा है।

वर्मीकम्पोस्ट वाले डॉक्टर साब

हम बात कर रहे हैं राजस्थान, जयपुर के नजदीक सुंदरपुरा गांव में रहने वाले डॉ. श्रवण यादव की।
केंचुआ खाद या वर्मीकम्पोस्ट (Vermicompost) निर्माण में इनकी रुचि देखते हुए, अब लोग इन्हें सम्मान एवं प्रेम से वर्मीकम्पोस्ट वाले डॉक्टर साब भी कहकर बुलाते हैं।

शुरुआत से रुख स्पष्ट

डॉ. श्रवण ने ऑर्गेनिक फार्मिंग संकाय से एमएससी किया है। साल 2012 में उन्हें JRF की स्कॉलरशिप भी मिली। मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी लगी लेकिन उनका मन नौकरी में नहीं लगा। मन नहीं लगा तो डॉ. साब ने नौकरी छोड़ दी। नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने राह पकड़ी उदयपुर महाराणा प्रताप यूनिवर्सिटी की। यहां वे जैविक खेती (Organic Farming) पर पीएचडी करने लगे। इसके उपरांत साल 2018 में डॉ. श्रवण को उसी यूनिवर्सिटी में सीनियर रिसर्च फ़ेलोशिप का काम मिल गया।


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डॉ. श्रवण के मुताबिक उनका मन शुरुआत से ही खेती-किसानी में लगता था। कृषि से जुड़ी छोटी-छोटी बारीकियां सीखने में उन्हें बहुत सुकून मिलता था। इस रुचि के कारण ही उन्होंने पढ़ाई के लिए कृषि विषय चुना और उस पर गहराई से अध्ययन कर जरूरी जानकारियां जुटाईं।

यूं शुरू किया बिजनेस

नौकरी करने के दौरान डॉ. श्रवण की, उनकी सबसे प्रिय चीज खेती-किसानी से दूरी बढ़ती गई। वे बताते हैं कि, नौकरी के कारण उनको कृषि कार्यों के लिए ज्यादा समय नहीं मिल पाता था। इस बीच वर्ष 2020 में कोरोना की वजह से लॉकडाउन की घोषणा के बाद वह अपने गांव सुंदरपुरा लौट आए। इस दौरान उन्हें खेती-किसानी कार्यों के लिए पर्याप्त वक्त मिला तो उन्होंने 17 बेड के साथ वर्मीकम्पोस्ट की एक छोटी यूनिट से बतौर ट्रायल शुरुआत की।

ताना नहीं अब मिलती है शाबाशी

उच्च शिक्षित होकर खाद बनाने के काम में रुचि लेने के कारण शुरुआत में लोगों ने उन्हें ताने सुनाए। परिवार के सदस्यों ने भी शुरू-शुरू में उनके इस काम में अनमने मन से साथ दिया।


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अब जब वर्मीकम्पोस्ट यूनिट से डॉ. श्रवण का लाभ लगातार बढ़ता जा रहा है, तो ताने अब शाबाशी में तब्दील होते जा रहे हैं। परिजन ने भी वर्मीकम्पोस्ट निर्माण की अहमियत को समझा है और वे खुले दिल से डॉ. श्रवण के काम में हाथ बंटाते हैं।

हर माह इतना मुनाफा

डॉ. श्रवण के मुताबिक, वर्मीकम्पोस्ट (केंचुआ खाद ) उत्पादन तकनीक (Vermicompost Production) से हासिल खाद को अन्य किसानों को बेचकर वे हर माह 2 से 3 लाख रुपये कमा रहे हैं। बढ़ते मुनाफे को देखते हुए डॉ. श्रवण ने यूनिट में वर्मीकम्पोस्ट बेड्स की संख्या भी अधिक कर दी है।

अब इतने वर्मीकम्पोस्ट बेड

डॉक्टर साब की वर्मीकम्पोस्ट यूनिट में अब वर्मी कंपोस्ट बेड की संख्या बढ़कर 1 हजार बेड हो गई है।

दावा सर्वोत्कृष्ट का

कृषि कार्यों के लिए समर्पित डॉ. श्रवण का दावा है कि, संपूर्ण भारत में उनकी वर्मीकम्पोस्ट यूनिट का मुकाबला कोई अन्य यूनिट नहीं कर सकती। उनका कहना है कि राजस्थान, जयपुर के नजदीक सुंदरपुरा गांव में स्थित उनकी वर्मीकम्पोस्ट यूनिट, भारत में प्रति किलो सबसे ज्यादा केंचुए देती है। यह यूनिट एक किलो में 2000 केंचुए देती है, जबकि शेष यूनिट में 400 से 500 केंचुए ही मिल पाते हैं।

कृषि मित्रोें को प्रशिक्षण

खुद की वर्मीकम्पोस्ट यूनिट के संचालन के अलावा डॉ. श्रवण अन्य जिज्ञासु कृषकों को भी वर्मीकंपोस्ट बनाने का जब मुफ्त प्रशिक्षण देते हैं, तो किसान मित्र बड़े चाव से डॉक्टर साब के अनुभवों का श्रवण करते हैं।


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मार्केटिंग का मंत्र

डॉक्टर श्रवण वर्मीकम्पोस्ट के लिए बाजार तलाशने सोशल मीडिया तंत्र का भी बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं। डॉ. ऑर्गनिक वर्मीकम्पोस्ट नाम का उनका चैनल किसानों के बीच खासा लोकप्रिय है। इस चैनल पर डॉ. श्रवण वर्मीकम्पोस्ट से जुड़ी जानकारियों को वीडियो के माध्यम से शेयर करते हैं। डॉ. श्रवण से अभी तक 25 हजार से अधिक लोग प्रशिक्षण प्राप्त कर स्वयं वर्मीकम्पोस्ट यूनिट लगाकर अपने खेत से अतिरिक्त आय प्राप्त कर रहे हैं। डॉ. श्रवण यादव के सोशल मीडिया चैनल देखने के लिए, नीचे दिए गये लिंक पर क्लिक करें : यूट्यूब चैनल (YouTube Channel) - "Dr. Organic Farming जैविक खेती" फेसबुक प्रोफाइल (Facebook Profile) : "Dr Organic (Vermicompst) Farm" लिंक्डइन प्रोफाइल (Linkedin Profile) - Dr. Sharvan Yadav

सरकारी प्रोत्साहन

गौरतलब है कि, वर्मीकम्पोस्ट फार्मिंग (Vermicompost Farming) के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर पर किसानों को लाभ प्रदान कर रही हैं। रासायनिक कीटनाशक मुक्त फसलों की खेती के लिए सरकारों द्वारा किसानों को लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा है।


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रासायन मुक्त खेती का मकसद लोगों को गंभीर बीमारियों से बचाना है। इसका लाभ यह भी है कि इस तरह की खेती किसानी पर किसानों को लागत भी कम आती है। भारत में सरकारों द्वारा प्रोत्साहन योजनाओं की मदद से जैविक खेती को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया जा रहा है।
अच्छी गुणवत्ता वाले दूध के लिए हुई पशुपालन की शुरुआत, आज गन्ने से बनाते हैं चाय और पानीपुरी

अच्छी गुणवत्ता वाले दूध के लिए हुई पशुपालन की शुरुआत, आज गन्ने से बनाते हैं चाय और पानीपुरी

परिवार को अच्छी गुणवत्ता वाला दूध पिलाने के लिए 2018 में की गई शुरुआत, एक किसान परिवार और व्यक्तिगत किसान के लिए आने वाले समय में एक बड़े लक्ष्य की तरफ बढ़ाया गया पहला कदम था। शुरुआत से ही जैविक खेती (Organic farming) और केमिकल मुक्त जीवन यापन में विश्वास रखने वाले अंबाला के निवासी, इंजीनियर विपन सरीन (Vipan Sarin) अब अपने आसपास के क्षेत्रों में, कृषि से प्राप्त होने वाले उत्पादों से दैनिक जीवन में इस्तेमाल होने वाली कई दूसरी चीजों के निर्माण के लिए जाने जाते हैं। लोग उन्हें किसानों के इंजीनियर बाबू कह कर भी संबोधित करते हैं। विपन बताते हैं कि जब उन्होंने अच्छी गुणवत्ता के दूध के लिए एक गाय का पालन अपने घर पर ही किया, तो उनके परिवार को काफी फायदा मिला और उन्हें पशुपालन और कृषि जगत से जुड़े क्षेत्रों में कुछ नया करने का साहस भी मिला। महाराष्ट्र के कई दूसरे स्थानों और मुंबई में मुफ्त में ऑर्गेनिक सब्जियां उपलब्ध करवाकर जैविक खेती के प्रति अपने पैशन को साबित कर चुके विपन ने अपनी पूरी जमीन के 20% हिस्से पर जैविक खेती की शुरुआत की थी और उन्होंने सबसे पहले गन्ने की ही खेती के साथ अपने इन विचारों को आगे बढ़ाने की सोची।

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अपनी खेती में मिली सफलता के बाद उन्होंने अपने आसपास के क्षेत्रों में स्थित किसान भाइयों को भी इसी तरह से खेती करने की सलाह दी। विपन बताते हैं कि जब शुरुआत में उन्होंने किसानों को वैल्यू ऐडेड प्रोडक्ट्स (Value added products) तैयार करने के लिए मनाना शुरू किया, तो कुछ लोगों को तो लगा कि ऐसा करके विपन अपना कोई फायदा ढूंढ रहे हैं और कई किसान भाई उनके इस प्रयास में सहयोग देने के लिए तैयार नहीं हुए, लेकिन जब विपन ने उन्हें समझाया कि गन्ने से तैयार होने वाले गुड़ (Jaggery) और चीनी (sugar) में हमें और हमारे उद्यमी भाइयों को बड़ी मशीनों की आवश्यकता होती है, जो कि भारत में अभी भी हर स्थान पर उपलब्ध नहीं है और किसानों को मजबूरन सहकारी संस्थाओं के द्वारा दी जाने वाली रेट को ही स्वीकार करना पड़ता है। अपने इन्हीं प्रयासों की बदौलत आज विपन गन्ने के जूस से तैयार किए गए कुछ सामान, जैसे कि जलेबी, पानीपुरी और आइसक्रीम जैसी चीजों के अलावा इमली के साथ मिलाकर उसकी चटनी भी तैयार कर पा रहे हैं और नई बाजार स्ट्रेटजी तथा बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों में काम करने वाले कुछ लोगों की मदद से, किसानों के द्वारा तैयार किए गए अपने इन उत्पादों को बाजार में बेचने के लिए एक बेहतर बैकवर्ड-फॉरवर्ड लिंकेज (Backward-forward linkage) के लिए भी लगातार प्रयासरत है। साल 2020 में विपन ने सेलेब्रेटिंग फार्मर एज इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड (Celebrating Farmers Edge International Private Limited) नाम की एक कंपनी की शुरुआत भी की है, जो इसी तरह के नए विचार किसानों के समक्ष प्रस्तुत करती है और किसानों को नए विचार खोजने के लिए इनाम भी देती है। विपन बताते हैं कि शुरुआती दिनों में किसानों को मनाना बहुत मुश्किल था इसलिए उन्होंने सोशल मीडिया और सामान्य इस्तेमाल में आने वाले माध्यमों का उपयोग किया। उन्होंने फेसबुक की मदद से पुणे और आसपास के क्षेत्रों से जुड़े किसानों से संपर्क बनाने की कोशिश की और नई स्टार्टअप के साथ सहयोग की भावना से तैयार किए गए उत्पादों की पैकेजिंग, मार्केटिंग और कुछ नए बेहतर इनोवेटिव विचारों के लिए किसानों की समय-समय पर वीडियो कॉल के जरिए बैठक भी आयोजित करवाई।

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इसके अलावा विपन साल 2018 से स्वयं कई बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों से संपर्क कर पुणे और महाराष्ट्र के किसानों के लिए भी कोल्ड स्टोरेज की सुविधा भी उपलब्ध करवा चुके है। विपिन बताते हैं कि इमली की चटनी पहले भी कई किसान बनाया करते थे, लेकिन इसे गन्ने के जूस को कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल कर बनाने से आर्थिक और स्वास्थ्य वर्धक दोनों ही फायदों में अच्छी वृद्धि हुई है। वह बताते है कि इमली की चटनी पहले गुड़, इमली और पानी तथा मसालों के मिश्रण से बनाई जाती थी, लेकिन अब गुड़ की जगह पर उस में गन्ने का जूस सीधा ही डाल दिया जाता है और इससे एक किलोग्राम इमली की चटनी तैयार करने में आने वाले खर्च में 50% तक की कमी आ गई है, इसी वजह से किसानों का मुनाफा 50% तो सीधे रूप से यहीं से बढ़ गया है। वह बताते है कि किसान अपने घर पर गुड़ भले ही ना बना पाए, लेकिन गन्ने का जूस आसानी से निकाल सकते है।

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जब विपन से उनके इसी तरह की इनोवेटिव कृषि विचारों के भविष्य के प्लान के बारे में पूछा गया तो पता चला कि वह आने वाले समय में कई लाखों किसानों को ऐसे ही नए विचारों की मदद से समृद्ध बनाने की राह पर ले जाने के लिए प्रयासरत रहेंगे। विनय मानते कि केवल किसान ही एकमात्र ऐसी कौम है जो कम बचत में भी सभी लोगों के पेट भरने का साहस रखती है, इसीलिए समाज के दूसरे सभी पक्षों को मिलकर इनकी मदद करनी चाहिए और देश को कृषि उत्पादों में आत्मनिर्भर बनाने वाले इन किसान भाइयों की खुशहाली में भागीदारी लेनी चाहिए। विपन बताते हैं कि जब शुरुआत में वह पानीपुरी के व्यवसाय करने वाले किसानों और दूसरे छोटे व्यापारियों के पास पहुंचे और उन्हें गन्ने की मदद से गोलगप्पे के साथ इस्तेमाल होने वाले पानी बनाने की सलाह दी तो लोगों ने उनका मजाक भी उड़ाया, लेकिन कुछ दिन बाद ही विपन ने अपने घर पर खुद के द्वारा मेहनत कर तैयार उत्पाद जब उन छोटे व्यापारियों को दिखाया और पानीपुरी में इस्तेमाल होने वाले पानी को गन्ने के रस के मिश्रण से बनाकर उन लोगों को खिलाया तो वह भी विपन के नए विचारों के कायल हो गए। विपिन बताते है कि गन्ना एक आकर्षक पसंद है जो कि अच्छा मुनाफा प्रदान कर सकती है। विपन तो यहां तक कहते है कि किसान भाइयों को ऑर्गेनिक सब्जियों की उपज को छोड़कर कुछ दिनों तक गन्ने की खेती कर देखना चाहिए, इससे उनका मुनाफा अवश्य बढ़ेगा, क्योंकि उनका मानना है कि जैविक सब्जियों का उत्पादन करना रसायनिक उत्पाद से तैयार हुई खेती की तुलना में महंगा पड़ता है और फिर किसानों को अपना मुनाफा बनाए रखने के लिए इन सब्जियों को महंगे दाम पर बेचना भी पड़ता है, लेकिन अभी भी भारत के मध्यमवर्गीय परिवारों में जैविक खेती को लेकर इतनी अधिक जागरूकता नहीं है, इसीलिए इनको खरीदने वाले ग्राहकों की संख्या भी कम है।

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विपन बताते हैं कि इसके लिए किसानों को 80:20 कृषि बिजनेस मॉडल का पालन करना चाहिए और किसान भाई अपने खेत की 80% जमीन में किसी भी दूसरी फसल का उत्पादन कर सकते है लेकिन 20% हिस्से में गन्ने का उत्पादन करके एक बार परीक्षण अवश्य करना चाहिए। विपिन का मानना है कि यदि भारत को कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी और बढ़ती हुई जनसंख्या की मांग की पूर्ति करनी है तो अब पारंपरिक रूप से की जा रही कृषि से काम नहीं चलेगा और आत्मनिर्भरता बनाए रखने के लिए ऐसे ही नए प्रगतिशील किसानों की आवश्यकता होगी, हालांकि इसके लिए विपन भारत सरकार और कई राज्य सरकारों के द्वारा किए जा रहे प्रयासों की भी तारीफ करते है।

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आशा करते है कि हमारे किसान भाइयों को कई कृषि विश्वविद्यालयों और उद्यमी शाखाओं से सम्मान प्राप्त कर चुके विपन जैसे प्रगतिशील किसानों की सफलता की यह कहानी पढ़कर कुछ नया सीखने को मिला होगा और भविष्य में ऐसे ही किसान भाई प्रगतिशील किसान बनने की राह पर चलकर भारत को आने वाले समय की खाद्य समस्या से बचाने में सहयोग प्रदान करने के अलावा कई निरक्षर और तकनीक से अनजान किसानों की मदद भी कर पाएंगे।

यूटूब की मदद से बागवानी सिखा रही माधवी को मिल चुका है नेशनल लेवल का पुरस्कार

यूटूब की मदद से बागवानी सिखा रही माधवी को मिल चुका है नेशनल लेवल का पुरस्कार

अपनी उम्र के युवा दिनों से ही पादप विज्ञान(Plant Science) और वनस्पति विज्ञान(Botany) में रुचि रखने वाली एक ग्रहणी, आज यूट्यूब पर एक चैनल के माध्यम से अपनी जैसे ही दूसरी गृहणियों को भी, जैविक खेती की मदद से प्राकृतिक उर्वरकों का इस्तेमाल कर छत पर बागवानी यानी रूफटॉपबागवानी (Roof / Terrace gardening) के बारे में जानकारियां उपलब्ध करवा रही है। यूट्यूब पर माधवी (Mrs. Madhavi Guttikonda) के 'मैडगार्डनर' (MAD GARDENER) नाम के चैनल पर लगभग 5 लाख से अधिक सब्सक्राइबर (subscriber) हैं

Mrs. Madhavi Guttikonda - Youtube Chanel - MAD GARDENER

अपने घर की छत पर ही फूल और फलों से शुरुआत करने वाली माधवी पिछले 10 सालों से जैविक खेती की मदद से सब्जियां उगा रही है। इस प्रकार की जैविक सब्जी उत्पादन की शुरूआत माधवी ने 25 वर्ष की उम्र में अपनी शादी के बाद की थी।

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पुराने दिनों को याद कर माधवी बताती हैं कि शुरुआती दिनों में वह एक किराए के एक अपार्टमेंट में रहते थे और वहीं पर कुछ अलग-अलग प्रकार के अच्छे दिखने वाले फूलों के पौधों की बागवानी करना शुरू किया था, 

इस समय माधवी का फोकस बागवानी से पैसा कमाना नहीं था बल्कि केवल अपने शौक के खातिर ही फूलों के पौधे लगाए थे। माधवी बताती है कि आज उनका फोकस खाने वाली सब्जियों के उत्पादन की तरफ है और उनके घर में इस्तेमाल होने वाली एक सप्ताह की सब्जियों में से लगभग पांच दिन की सब्जी उनके खुद के उगाए हुए रूफटॉप गार्डन से ही इस्तेमाल की जाती है।

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अपने बेटे और बेटी के कहने पर 2018 में यूट्यूब चैनल की शुरुआत करने वाली माधवी को शुरुआत में कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। भारत के अधिकतर कृषि उत्पादन क्षेत्र में हिंदी भाषी लोग होने के बावजूद इन्हें हिंदी नही आने के कारण, तेलुगु भाषा में बागवानी का यह चैनल शुरू करना पड़ा। 

लेकिन पहले ही महीने में उन्हें काफी सफलता मिली और पिछले कुछ सालों से कमाए गए अनुभव को वह आज भी सोशल मीडिया और यूट्यूब की मदद से आसानी से लोगों तक पहुंचाने में सफल रही हैं। 

माधवी वर्तमान में कम समय में पक कर तैयार होने वाली मौसमी सब्जियों का उत्पादन करना पसंद करती है, जिनमें टमाटर, मिर्ची और लौकी को अच्छी सब्जी मानती है। इसके अलावा वह ड्रैगन फ्रूट, पपीता और नींबू तथा केले जैसे छोटे पौधे भी अपनी छत पर बने हुए 18 स्क्वायर फीट के गार्डन में लगाकर परीक्षण कर चुकी हैं।

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माधवी का मानना है कि खेती और किसानी में यदि बेहतरीन तरीके की वैज्ञानिक तकनीक और नए विचारों वाली विधियों का इस्तेमाल किया जाए तो खेती उतनी मुश्किल नहीं होती, जितनी दिखाई देती है। 

पिछले कुछ समय से लोगों से हुए जुड़ाव को लेकर माधवी कहती हैं कि वह जब भी किसी नई प्रकार की सब्जी के उत्पादन के बारे में सोचती है तो वीडियो बनाने से पहले वह किसी भी प्रकार का रिसर्च नहीं करती और अपने चैनल के माध्यम से लोगों से ही उस सब्जी के लिए नए इनोवेटिव आईडिया लेने की कोशिश करती हैं। 

यदि कोई अनुभवी किसान माधवी को अपनी राय देते हैं, तो वह स्वयं उनसे पूरी बात कर जानकारी प्राप्त करती हैं और फिर उसे अपने अगले वीडियो में किसान भाइयों तक शेयर करती हैं। 

कंपोस्ट खाद के अलग-अलग बॉक्स में अपनी सब्जियों उगाने को प्राथमिकता देने वाली माधवी बताती हैं कि यदि मिट्टी का पूरा ध्यान रखा जाए और बीज को पूरे उपचार के बाद इस्तेमाल किया जाए, तो पौधे की उत्पादकता बढ़ाने के अलावा उसमें लगने वाले हानिकारक कीटनाशक और दूसरे कई प्रकार के मक्खियों से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है।

माधवी बताती है कि यदि सही समय पर उनके पास अच्छा विकल्प होता तो वह अवश्य एक बड़ी किसान के रूप में काम करना पसंद करती, लेकिन शहर में रहने की वजह से और जमीन ना होने के कारण केवल रूफटॉप बागवानी की मदद से ही वह खेती में अपने पैशन को बरकरार बनाए रख सकती थी। 

माधवी ने बताया कि उनके यूट्यूब चैनल 'मैड गार्डनर' की मदद से उन्हें महीने में लगभग एक लाख रुपए तक का रेवेन्यू प्राप्त हो जाता है। पिछले कुछ महीनों से से माधवी अपने यूट्यूब से प्राप्त होने वाली आय का 50% हिस्सा शहर के ही गरीब बच्चों को खाना खिलाने के लिए करती है।

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कृषि से जुड़ी एक मैगजीन के द्वारा साल 2021 में माधवी को टेरेस बागबानी के लिए राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार दिया गया था, इन लम्हों को याद करते हुए माधवी कहती है कि भारत के उपराष्ट्रपति से मिलने वाले इस पुरुस्कार के बारे में उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था, 

लेकिन कृषि में अपने पैशन की वजह से आज उन्होंने यह मुकाम हासिल किया है। माधवी यहां तक कहती है कि कई बार तो वह हैरान हो जाती है जब 10 साल से छोटे बच्चे भी उनके वीडियो देख, कृषि में अपना पैशन विकसित कर पा रहे हैं।

भविष्य की नीतियों के बारे में जब माधवी से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि वह जल्द ही आसपास के क्षेत्र में ही खुद की जमीन खरीद कर स्वयं के इस्तेमाल में आने वाले खाने का उत्पादन करना चाहती है और बड़ी संस्थाओं के साथ मिलकर कृषि में इस्तेमाल होने वाले नई तकनीकों को किसान भाइयों तक पहुंचाने के लिए भी प्रयासरत है।

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माधवी अपने चैनल के माध्यम से लोगों में जागरूकता फैलाकर उनकी आय बढ़ाने के अलावा कृषि क्षेत्र में नए इनोवेटिव विचार के प्रसार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, भले ही बड़े किसानों की तरह माधवी लाखों-करोड़ों रुपए का मुनाफा कर दूसरे लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत ना बन पाए, लेकिन अपने अनुभव का इस्तेमाल कर कई किसानों को इस लायक बनाने में सफल रही है। 

आशा करते हैं कि हमारे किसान भाई भी उनके इस चैनल की मदद से छत पर की जाने वाली बागबानी के बारे में कुछ सीख कर अपने घर में इस्तेमाल होने वाली सब्जियों की जैविक खेती जरूर कर पाएंगे और भविष्य में बड़ी संस्थाओं से जुड़कर नई तकनीकों का इस्तेमाल कर कृषि व्यवसाय में भी मुनाफा कमा पाएंगे।

जैविक खेती क्या है, जैविक खेती के फायदे

जैविक खेती क्या है, जैविक खेती के फायदे

भारत कृषि प्रधान देश है यह तथ्य हर कोई जानता है। इतना ही नहीं यहां के नागरिकों की खेती पर निर्भरता भी 80 फ़ीसदी के आसपास है। हरित क्रांति के शुरुआती दौर यानी 1960 से पूर्व यहां परंपरागत और जैविक खेती ही की जाया करती थी लेकिन बढ़ती आबादी और लोगों का पेट भरने के क्रम में रासायनिक खाद और उन्नत किस्मों के बीजों का चलन शुरू हुआ। हम आत्म निर्भर तो हुए, खाद्यान्न के भंडार भरे गए लेकिन खेती किसानी घाटे का सौदा होने लगा। साठ के दशक में 2 किलोग्राम रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग होता था। वह अब 100 किलो तक पहुंच गया है। लागत कई गुना बढ़ गई है और उत्पादन स्थिर हो गया है। प्रधानमंत्री के 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के वादे को पूरा करने में वैज्ञानिकों के भी हाथ पैर फूल रहे हैं। उन्हें कोई बेहतर रास्ता अभी तक समझ नहीं आया है। और फिर लोग जैविक खेती की तरफ लौटने की सलाह देने लगे हैं। इसके कई कारण हैं। बेकार होती जमीन, प्रभावित होती खाद्यान्न की गुणवत्ता, पशु और मानव में बढ़ते अनेक तरह के रोग इसके मुख्य कारण हैं। पर्यावरणीय संकट इससे भी ज्यादा गंभीर है। स्वास्थ्य को लेकर सजग लोगों के लिहाज से जैविक खेती अच्छी आय का जरिया बन रही है।

जैविक और रासायनिक कृषि में क्या अंतर है

कृषि जैविक एवं रासायनिक नहीं होती यह दोनों श्रेणी खेती की होती हैं। रसायनों में जीवन नहीं होता है जबकि जैविक खेती में इस तरह के खादों का प्रयोग किया जाता है जिनमें जीवन होता है। जैविक खेती में जीवाणु आदि होते हैं जोकि जमीन और पौधे दोनों को स्थाई शक्ति प्रदान करते हैं। रसायनों में जीवन नहीं होता है जबकि जिसमें जीवन होता है वह मरता भी है। जैविक खाद गोबर, कचरा, पौधों के पत्तेआदि की सड़ने की लंबी प्रक्रिया के बाद तैयार होते हैं। इनमें फसलों को पोषण देने वाले जीवाणु होते हैं।

रसायन मुक्त खेती

नशा मुक्त खेती को भी लोगों ने अनेक नाम दे दिए हैं। इनमें जैविक खेती, प्राकृतिक खेती, जीरो बजट खेती, टिकाऊ खेती, आवर्तन सील खेती, वैदिक खेती आदि नाम खासी चर्चा में है। जैविक खेती में रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होता ‌। हरी खाद, गोबर की खाद, वर्मी कंपोस्ट, नेपेड कंपोस्ट आदि जैविक खादों का प्रयोग कर इस तरह की खेती की जाती है। जैविक खेती में बाहरी चीजों का प्रयोग बेहद कम किया जाता है। यह किसानों को प्रकृति के करीब लाती है।

जैविक खेती के फायदे

रासायनिक खादों से जहां मृदा, चारा और खाद्यान्न की गुणवत्ता प्रभावित होती है वही जैविक खादों से यह बेतहाशा बढ़ती है। जिन खेतों में जैविक खादों का प्रयोग होता है वहां की जल धारण क्षमता भी बढ़ जाती है और फसलों में पानी भी कम लगाना पड़ता है। जैविक खेती करने से किसानों की लागत 80 फ़ीसदी से और ज्यादा तक कम की जा सकती है।धीरे-धीरे जैविक खेती की ओर आने से फसलों की उत्पादकता और गुणवत्ता दोनों में ही इजाफा होता है। भूमि के जल स्तर में भी यह इजाफा करने का कारण बनती है। निर्यात के लिहाज से भी जैविक उत्पाद जल्दी बेचे जा सकते हैं।

कैसे बनाएं जैविक खाद

जैविक खाद बनाने के लिए पौधों के अवशेष गोबर, जानवरों का बचा हुआ चारा आदि सभी घास फूस को जमीन के नीचे 4 फीट गहरे गड्ढे में डालते रहना चाहिए। इसे जल्दी से लाने के लिए उसे संस्थान दिल्ली एवं जैविक खेती केंद्र गाजियाबाद के डिजाल्वाल्वर साल्यूसन का प्रयोग कर सकते हैं। इसके अलावा बेहद सस्ती कीमत पर सरकारी संस्थानों द्वारा जीवाणु खाद के पैकेट किसानों को दिए जाते हैं। इनमें एजेक्वेक्टर, पीएसबी, राइजोबियम आदि जीवाणु खाद प्रमुख हैं। जीवाणु खादों का प्रयोग होता है कि यह है जमीन में मौजूद नाइट्रोजन फास्फोरस पोटाश आदि तत्वों को अवशोषित कर के पौधों को प्रदान करते हैं। जैविक खेती में किसी तरह के रसायन का प्रयोग नहीं होता। इस तरीके से खेती करने वाले किसान केवल प्राकृतिक चीजों के माध्यम से कीट फफूंद आदि को खत्म करते हैं। इससे फसल पोषण युक्त और शादी युक्त पैदा होती है। किसी भी खेत में जैविकखेती करने के लिए कम से कम 2 से 3 साल का समय लगता है। धीरे-धीरे रसायनों का प्रयोग बंद किया जाता है और कार्बनिक खादों का प्रयोग शुरू किया जाता है। आज भारत में जैविक खाद्य उत्पादों का कारोबार तेजी से गति पकड़ रहा है और इनकी बेहद डिमांड है।
लहसुन का जैविक तौर पर उत्पादन करके 6 माह में कमाऐं लाखों

लहसुन का जैविक तौर पर उत्पादन करके 6 माह में कमाऐं लाखों

जैविक फल सब्जियों का बाजार के अंदर काफी अच्छा भाव मिलता है। ऐसी स्थिति में यदि आप लहसुन की खेती जैविक ढ़ंग से करते हैं, तो आप काफी मोटी आमदनी कमा सकते हैं। लहसुन की खेती काफी लाभदायक होती है। यदि आप इसकी खेती जैविक ढ़ंग से करते हैं, तो यह आपकी आमदनी को दोगुना कर सकती है। बाजार में रसायन मुक्त सब्जियों की काफी अधिक मांग होती है। लोग जैविक ढ़ंग से उगाई जाने वाली सब्जियों के लिए ज्यादा कीमत भी देने को तैयार रहते हैं। ऐसी स्थिति में आज हम आपको जैविक विधि से लहसुन की खेती करने के तरीके के विषय में बताने जा रहे हैं। जिस विधि को अपनाकर आप मोटी आमदनी कर सकते हैं।

जैविक ढ़ंग से खेत तैयार करना

लहसुन की जैविक खेती का उपयुक्त वक्त जुलाई माह की गर्मी में होता है। इस दौरान खेत की जुताई के उपरांत उसमें हरी खाद के साथ ढेंचा की बिजाई भी कर सकते हैं। आप इस बात का विशेष ख्याल रखें कि आप वक्त-वक्त पर हरी खाद के साथ मृदा को पलटते रहें। खेती के लिए मृदा में पर्याप्त नमी होनी आवश्यक है। लहसुन की बिजाई के लिए मेढ़ निर्मित की जा सकती है। मेढ़ की लम्बाई जमीन के ढाल के अनुरूप ही तैयार करें।

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लहसुन की खेती के लिए जैविक खाद

खेत के उपजाऊपन में वृद्धि के लिए आप मृदा में सड़ी हुई गोबर की खाद एवं कम्पोस्ट को क्यारियों में मिला दें। आप स्वयं के घर पर नीम की पत्तियों से निर्मित खाद का भी उपयोग कर सकते हैं। खेत में कम्पोस्ट अथवा गोबर खाद का इस्तेमाल लहसुन की रोपाई के 15 से 20 दिन पश्चात ही कर दें।

लहसुन की फसल की सिंचाई

लहसुन की बिजाई के पश्चात इसकी प्रथम सिंचाई 8 से 10 दिन के उपरांत कर देनी चाहिए। इसकी बेहतरीन उपज पाने के लिए दूसरी सिंचाई को 20 से 25 दिन की समयावधि पर मिट्टी की गुणवत्ता के आधार पर करनी चाहिए। लहसुन की फसलों को सदैव निराई-गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती रहती है।

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लहसुन का भण्डारण

लहसुन की फसल को पककर तैयार होने में लगभग पांच से छह माह का वक्त लग जाता है। जब इसके पौधों की पत्तियों का रंग पीला नजर आने लगे तो इसकी सिंचाई बंद कर दें। साथ ही, कुछ दिनों के पश्चात इसकी मृदा से निकालना शुरु कर दें। इन गठिलें लहसून को तकरीबन 3 से 4 दिनों तक छाया में सूखने के लिए रख दें। वर्तमान में आप इसे घर की किसी सूखी जगह पर रख दें। यह लहसुन आगामी 6 से 8 महीनों तक भण्डारित करके रखा जा सकता है। एक एकड़ के खेत में आप सुगमता से इसकी खेती कर 2 से 3 लाख रुपये की आमदनी कर सकते हैं।
सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी छोड़ बने सफल किसान की पीएम मोदी ने की सराहना

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आज के समय में सरकार व किसान स्वयं अपनी आय को दोगुना करने के लिए विभिन्न कोशिशें कर रहे हैं। इसकी वजह से किसान फिलहाल परंपरागत खेती के साथ-साथ खेती की नवीन तकनीकों को अपनाने लगे हैं, परिणाम स्वरूप उन्हें अच्छा-खासा मुनाफा भी हांसिल हो रहा है। तेलंगाना के करीमनगर के किसान ने भी इसी प्रकार की मिश्रित खेती को अपनाकर अपनी आमदनी को लगभग दोगुना किया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी करीमनगर के किसान की इन कोशिशों और परिश्रम की सराहना की। साथ ही, कहा कि आप भी खेती में संभावनाओं का काफी सशक्त उदाहरण हैं। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 18 जनवरी 2023 को विकसित भारत संकल्प यात्रा के लाभार्थियों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से वार्तालाप की है। इस कार्यक्रम में भारत भर से विकसित भारत संकल्प यात्रा के हजारों लाभार्थी शम्मिलित हुए हैं। इस कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री, सांसद, विधायक और स्थानीय स्तर के प्रतिनिधि भी मौजूद रहे।

बीटेक स्नातक कृषक एम मल्लिकार्जुन रेड्डी की प्रतिवर्ष आय

प्रधानमंत्री मोदी से वार्तालाप करते हुए करीमनगर, तेलंगाना के किसान एम मल्लिकार्जुन रेड्डी ने बताया कि वह पशुपालन और बागवानी फसलों की खेती कर रहे हैं। कृषक रेड्डी बीटेक से स्नातक हैं और खेती से पहले वह एक सॉफ्टवेयर कंपनी में कार्य किया करते थे। किसान ने अपनी यात्रा के विषय में बताया कि शिक्षा ने उन्हें एक बेहतर किसान बनने में सहायता की है। वह एक एकीकृत पद्धति का अनुसरण कर रहे हैं, इसके अंतर्गत वह पशुपालन, बागवानी और प्राकृतिक खेती कर रहे हैं।

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बतादें, कि इस पद्धति का विशेष फायदा उनको होने वाली नियमित दैनिक आमदनी है। वह औषधीय खेती भी करते हैं और पांच स्त्रोतो से आमदनी भी हांसिल कर रहे हैं। पूर्व में वह पारंपरिक एकल पद्धति से खेती करने पर हर साल 6 लाख रुपये की आय करते थे। साथ ही, वर्तमान में एकीकृत पद्धति से वह हर साल 12 लाख रुपये की कमाई कर रहे हैं, जो उनकी विगत आमदनी से भी दोगुना है।

कृषक रेड्डी को उपराष्ट्रपति द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है

किसान रेड्डी को आईसीएआर समेत बहुत सारे संस्थाओं एवं पूर्व उपराष्ट्रपति श्री वेंकैया नायडू द्वारा भी सम्मानित व पुरुस्कृत किया जा चुका है। वह एकीकृत और प्राकृतिक खेती का प्रचार-प्रसार भी खूब कर रहे हैं। साथ ही, आसपास के क्षेत्रों में कृषकों को प्रशिक्षण भी प्रदान कर रहे हैं। उन्होंने, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, किसान क्रेडिट कार्ड, ड्रिप सिंचाई सब्सिडी और फसल बीमा का फायदा उठाया है। प्रधानमंत्री ने उनसे केसीसी पर लिए गए ऋण पर अपनी ब्याज दर की जांच-परख करने के लिए कहा है। क्योंकि, केंद्र सरकार और राज्य सरकार ब्याज अनुदान प्रदान करती है।

जैविक खेती से किसान कमा सकते है अधिक उपज जाने सम्पूर्ण जानकारी

जैविक खेती से किसान कमा सकते है अधिक उपज जाने सम्पूर्ण जानकारी

भारत वर्ष में जैविक खेती बहुत पुराने समय से चलती आ रही है। हमारे ग्रांथों में प्रभु कृष्ण और बलराम, जिन्हें हम गोपाल और हलधर कहते हैं, कृषि के साथ-साथ गौपालन भी किया जाता था, जो दोनों बहुत फायदेमंद था, न सिर्फ जानवरों के लिए बल्कि वातावरण के लिए भी. आजादी मिलने तक भारत में यह परम्परागत खेती की जाती रही है। बाद में जनसंख्या विस्फोट ने देश पर उत्पान बढ़ाने का दबाव डाला, जिसके परिणामस्वरूप देश रासयनिक खेती की ओर बढ़ा और अब इसके बुरे परिणाम सामने आने लगे हैं। रासायनिक खेती हानिकारक होने के साथ-साथ बहुत महंगी होती है, जिससे फसल उत्पादन की लागत बढ़ जाती है|

इसलिए देश अब जैविक खेती की ओर बढ़ रहा है क्योंकि यह स्थायी, सस्ता और स्वावलम्बी है। आइए जानते हैं जैविक खेती क्या है और किसानों को इसे क्यों करना चाहिए।

मिट्टी की सेहत सुधर में केंचुआ का है मुख्य योगदान 

हम सब जानते हैं कि जमीन पर पाए जाने वाले केंचुए आदमी के लिए बहुत उपयोगी हैं। भूमि में पाए जाने वाले केंचुए खेत में पढ़े हुए पेड़-पौधों के अवशेषों और कार्बनिक पदार्थों को खाकर गोलियों में बदल देते हैं, जो पौधों के लिए देशी खाद बनते हैं। इस केंचुए से 2 महीने में कई हैक्टेयर का खाद बनाया जा सकता है। इस खाद को बनाने के लिए आसानी से उपलब्ध खरपतवार, मिटटी और केंचुआ की जरूरत पड़ती है। आइए जानते हैं कि केचुएँ खेत की मिट्टी को कैसे स्वस्थ बनाते हैं।

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जैव कल्चर के माध्यम से बढ़ती है मिट्टी की उर्वरा शक्ति 

जैव कल्चर मिट्टी की उर्वरा शक्ति और फसल उत्पादन क्षमता को बढ़ाते हैं जब भूमि में पड़े पादप अवशेषों को पाचन किया जाता है।उर्वरक अक्सर दलहनी फसलों में नहीं प्रयोग किया जाता है  इसका कारण राइजोबियम कल्चर दलहनी पौधों की जड़ों में पाया जाता है | जो वायुमंडल से नाईट्रोजन लेकर पोषक तत्वों की पूर्ति करता है, लेकिन दलहनी फसलों की जड़ों में राईजोबियम नहीं होता है दलहनी पौधों की जड़ को दूसरी फसलों में प्रयोग करने से नाईट्रोजन की आवश्यकता को पूरा करने के लिए क्या किया जा सकता है?

जैविक खेती का पंजीकरण करना है बहुत आवश्यक 

यदि किसान जैविक खेती करता है या करने की कोशिश करता है तो उसे जैविक पंजीयन कराना चाहिए, क्योंकि पंजीयन नहीं होने से किसान को फसल का मूल्य कम मिलता है। क्योंकि आपके पास कोई दस्तावेज नहीं है जो बताता है कि जय की फसल जैविक या रासायनिक है इसलिए कृषि समाधान ने जैविक पंजीयन की पूरी जानकारी प्राप्त की है। जिसमें किसान 1400 रुपये खर्च करके एक हैक्टेयर पंजीकृत कर सकते हैं |

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जैविक खाद बनाने की विधि 

कृषि में अत्यधिक रासायनिक उर्वरक तथा कीटनाशक के उपयोग से बीमारियां और खर्च बढ़ रहे हैं जैविक कृषि को अपनाने से लागत कम होगी और बीमारी कम होगी। इसके लिए किसानों को अपने घर पर देशी खाद और रासायनिक कीटनाशक की जगह देशी कीटनाशक बनाने की जरूरत है। इसके लिए किसानों को खड़ा करने और कीटनाशक बनाने का तरीका आना चाहिए। इसलिए किसानों ने खाद और कीटनाशक बनाने की प्रक्रिया विकसित की है। गाय के गोबर, गुड और गो मूत्र से तरल जैविक खाद बनाने की आज की कड़ी में जानकारी दी गई है।

जैविक विधि से की जा सकती है फसलों की कीटों और रोगों से रक्षा 

कीट किसी भी फसल में रहते हैं कीट फसल को बहुत नुकसान पहुंचाता है, जो उत्पादन को प्रभावित करता है | इस कीट को नियंत्रित करना आवश्यक है इसलिए किसान समाधान ने जैविक रूप से कीट नियंत्रण के बारे में जानकारी दी है। यह कीटनाशक तम्बाकू, नीम, महुआ, इमली की छाल और तेल से बनाया जाता है। जो सस्ता और आसानी से उपलब्ध है |

जैविक खाद होती है पोषक तत्वों से भरपूर 

फसल की उत्पादकता मिटटी में नाईट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की मात्रा पर निर्भर करती है। जब मिटटी में पोषक तत्व की कमी होती है, तो उसे बहार से भर दें। यह पोषक तत्व रासायनिक रूप से आसानी से पाया जा सकता है, लेकिन इसकी कीमत अधिक होने से फसल का उत्पादन अधिक महंगा होता है। इसके लिए प्राकृतिक खाद का उपयोग करना चाहिए | जैविक खाद में नाईट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की मात्रा जानना महत्वपूर्ण है। यही कारण है कि किसान समाधान सभी खादों में पोषक तत्वों की सूचना लाया है।

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जैविक तरीके से उगाई गयी सब्जियों के किसानों को मिलता है अधिक दाम

जैविक सब्जी और साग की मांग बढ़ गई है | इसकी लागत भी अधिक है | इसके लिए यह महत्वपूर्ण है कि सब्जी में प्रयोग किया गया खाद कीटनाशक गोबर, केंचुआ और अन्य जैविक खाद से बना हो। किसान अपने घर में कीटनाशक और खाद बनाकर जैविक सब्जी और साग उत्पादन कर सकते हैं। किसान समधान ने जैविक सब्जी और साग की खेती की पूरी जानकारी प्राप्त की है। जिससे अच्छा पैसा कमाया जा सकता है

पंजीकृत होना बहुत आवश्यक है 

कृषक जैविक खेती के लिए पंजीकृत होना चाहिए | जिससे फसलों और फलों का अच्छा मूल्य मिल सकता है | केंद्रीय सरकार ने जैविक खेती की प्रमाणिकता देना शुरू कर दिया है | इसके लिए राज्य में एक सरकारी संस्था बनाई गई है | पुरे देश में निजी संस्थानों का भी सहयोग लिया गया है | नियमों के साथ, यह संस्था किसी भी किसान को जैविक प्रमाणिकता देती है। इन सभी संस्थानों के नाम, कार्यालय पत्ता और दूरभाष नंबर दिए गए हैं।

लहसुन की खेती करे कमाल (Garlic Crop Cultivation Information )

लहसुन की खेती करे कमाल (Garlic Crop Cultivation Information )

लहसुन की खेती यूंतो समूचे देश में की जाती है लेकिन हर राज्य के कुछ चुनिंदा इलाके इसकी खेती के लिए जाने जाते हैं। यह एक कन्द वाली मसाला फसल है। इसकी कलियों को ही बीज के रूप में रोपा जाता है।  इसमें एलसिन नामक तत्व गंध और इसके स्वाद के लिए जिम्मेदार होता है। इसका इस्तेमाल गले तथा पेट सम्बन्धी बीमारियों में होता है। हर दिन लहसुन की एक कली खाने से रोग दूर रहते हैं। इसका उपयोग आचार,चटनी,मसाले तथा सब्जियों में किया जाता है। इसका उपयोग हाई ब्लड प्रेशर, पेट के विकारों, पाचन विकृतियों, फेफड़े के लिये, कैंसर व गठिया की बीमारी, नपुंसकता तथा खून की बीमारी के लिए होता है। इसमें एण्टीबैक्टीरियल तथा एण्टी कैंसरस गुणों के कारण बीमारियों में प्रयोग में लाया जाता है। इसकी खेती मुख्यत: तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश के मैनपुरी, गुजरात, मध्यप्रदेश के इन्दौर, रतलाम व मन्दसौर, में बड़े पैमाने पर होती है। 

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 लहसुन की खेती के लिए मध्यम तापमान ज्यादा अच्छा रहता है। छोटे दिन इसके कंद निर्माण के लिये अच्छे होते हैं। इसकी सफल खेती के लिये 29.35 डिग्री सेल्सियस तापमान 10 घंटे का दिन और 70% आद्रता उपयुक्त होती है 

भूमि का चयन

 

 किसी भी कंद वाली फसल के लिए भुरभुरी मिट्टी अच्छी रहती है। इसके लिये उचित जल निकास वाली दोमट भूमि अच्छी होती है।

लहसुन की उन्नत किस्में

 

 एग्रीफाउड व्हाईट किस्म करीब 150 दिन में तैयार होकर 140 कुंतल, यमुना सफेद 1 (जी-1) 150-160 दिनों में तैयार होकर 150-160 क्विन्टल, यमुना सफेद 2 (जी-50) 160—70 दिन में 140 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज देती हैं। जी 50 किस्म बैंगनी धब्बा तथा झुलसा रोग के प्रति सहनशील है। यमुना सफेद 3 (जी-282) किस्म 150 दिन में 200 कुंतल, यमुना सफेद 4 (जी-323) 175 दिन में 250 कुंतल तक उपज देती है। इनके अलावा भी अनेक किस्में क्षेत्रीय आधार पर ​विकसित हो चुकी हैं। इनके विषय में विस्तार से जानकारी हासिल कर किसान उन्हें लगा सकते हैं। लहसुन की बिजाई का उपयुक्त समय अक्टूबर से नवंबर माह होता है। 

बीज की बिजाई

 

 लहसुन की बुवाई हेतु स्वस्थ एवं बडे़ आकार की कलियों का उपयोग करें। इनका फफूंदनाशक दबा से उपचार अवश्य करें। ऐसा करने से कई तरह के रोग संक्रमण से फसल को प्रारंभिक अवस्था में बचाया जा सकता है। बीज 5-6 क्विंटल प्रति हैक्टेयर लगता है। शल्ककंद के मध्य स्थित सीधी कलियों का उपयोग बुआई के लिए न करें।  कलियों को मैकोजेब+कार्बेंडिज़म 3  ग्राम दवा के सममिश्रण के घोल से उपचारित करना चाहिए। लहसुन की बुआई कूड़ों में, छिड़काव या डिबलिंग विधि से की जाती है। कलियों को 5-7 से.मी. की गहराई में गाड़कर उपर से हलकी मिट्टी से ढकना चाहिए। बोते समय कलियों के पतले हिस्से को उपर ही रखते है। बोते समय कलियों से कलियों की दूरी 8 से.मी. व कतारों की दूरी 15 से.मी.रखना उपयुक्त होता है। 

खाद एवं उर्वरक

 

 लहसुन की खेती के लिए कम्पोस्ट खाद ​के अलावा  175 कि.ग्रा. यूरिया, 109 कि.ग्रा., डाई अमोनियम फास्फेट एवं 83 कि.ग्रा. म्यूरेट आफ पोटाश की जरूरत होती है। गोबर की खाद, डी.ए. पी. एवं पोटाश की पूरी मात्रा तथा यूरिया की आधी मात्रा खेत की अंतिम तैयारी के समय भूमि मे मिला देनी चाहिए। शेष यूरिया की मात्रा को खडी फसल में 30-40 दिन बाद छिडकाव के साथ देनी चाहिए। सूक्ष्म पोषक तत्वों की पूर्ति हेतु 20 से 25 किलोग्राम माइक्रोन्यूट्रियंट मिश्रण मिट्टी में मिलाएं। 

सिंचाई प्रबंधन

कंद वाली ज्यादातर फसलों का बीज बोने के तत्काल बाद अच्छे अंकुरण हेतुु हल्की सिंचाई करें। तदोपरांत जरूरत और जमीन की मांग के अनुरूप पानी लगाएंं। जड़ों में उचित वायु संचार हेतु खुरपी या कुदाली द्वारा बोने के 25-30 दिन बाद प्रथम निदाई-गुडाई एवं दूसरी निदाई-गुडाई 45-50 दिन बाद करनी चाहिए। खरपतवार नियंत्रण हेतु प्लुक्लोरोलिन 1 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व बुआई के पूर्व या पेड़ामेंथिलीन 1 किग्रा. सक्रिय तत्व बुआई बाद अंकुरण पूर्व 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करें।

उत्तर प्रदेश में प्राकृतिक खेती के लिए राष्ट्रीय गठबंधन की शुरुआत

उत्तर प्रदेश में प्राकृतिक खेती के लिए राष्ट्रीय गठबंधन की शुरुआत

प्राकृतिक खेती के लिए राष्ट्रीय गठबंधन के उत्तर प्रदेश के अध्याय की उत्तर प्रदेश के बांदा में किसान प्रेम जी की बगिया में बैठक से शुरूआत हुई। यह एक राष्ट्रीय स्तर का नेटवर्क है जो सैकडों संस्थाओं और अलग-अलग राज्य सरकारों के साथ प्राकृतिक/जैविक खेती पर काम कर रहा है। इस शुरुआती बैठक में राज्य में 30 से अधिक लोग एवं विभिन्न जनपदों की तकरीबन 20 संस्थाओं ने भाग लिया। बैठक की शुरूआत में आंध्र प्रदेश से स्वाति ने कहा कि यह प्राकृतिक खेती के लिए विश्व में सबसे बड़ा अभियान है। कहा कि प्राकृतिक खेती के लिए किसानों को सक्षम बनाना होगा। उन्होंन यह भी कहा कि जैव इनपुट संसाधन केन्द्र के माध्यम से सामुदायिक स्तर पर कीटनाशकों और रासायनिक खादों के विकल्पों को बड़े पैमाने पर बनाया जा सकता है। बैठक में सभी संस्थाओं ने अपने काम का विवरण दिया और काम में आने वाली चुनौतियों और राज्य में प्राकृतिक खेती को आगे बढ़ाने  की संभावनाओं के बारे में सुझाव व्यक्त किए। इनमें श्रमिक भारती कानपुर, हरतिका छत्तरपुर, आगा खान फाउण्डेशन बहराइच, नवभारत समाज कल्याण समिति मुरादाबाद, सर सईद ट्रस्ट आयोध्या, युवा कौशल विकास मण्डल हमीरपुर, वनवासी सेवा आश्रम सोनभद्र, अखिल भारतीय समाज सेवा संस्था चित्रकूट, जीवा फाउण्डेशन बांदा, ग्रामोन्नति संस्था महोबा, अरुणोदय संस्थान, सम्मीपुुर नेचर फॉर्मिंग आदि प्रमुख थीं। अंतिम सत्र में अगले चार माह के लिए साझे कार्यक्रम तय हुए। इसमें प्राकृतिक खेती के लिए वातावरण तैयार किया जाए। प्राकृतिक खेती के लिए काम करने वाली संस्थाओं को आपस में जोड़ना। साझी समझ विकसित करने के लिए एक माह में चार चार दिवसीय शिविर आयोजित किए जाएंगे। धन के लिए नेटवर्किंग तैयार करना।
उत्‍तर प्रदेश बजट 2.0 में यू.पी. के किसानों को क्या मिला ?

उत्‍तर प्रदेश बजट 2.0 में यू.पी. के किसानों को क्या मिला ?

उत्‍तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वर्ष 2022 का बजट पेश किया है। जिसमे यू. पी. के वयस्कों, महिलाओं, गरीब किसानों, बेरोजगारों आदि सभी को लगभग काफ़ी कुछ मिला है। तो आइए हम जानते है कि इस बजट के माध्यम से वहां के किसानों को क्या फ़ायदा मिला ?

उत्‍तर प्रदेश बजट 2.0 के माध्यम से किसानों को फ़ायदा :

- सिंचाई के लिए मुफ़्त बिजली, पी.एम. कुसुम योजना, सोलर पैनल्स, लघु सिंचाई परियोजना

बजट में किसानों को सिंचाई के लिए मुफ़्त बिजली का प्रावधान है। इसके लिए किसानों को पी.एम. कुसुम योजना के अंतर्गत किसानों को मुफ़्त सोलर पैनल्स उपलब्ध कराए जाएंगे। सिंचाई की अवशेष परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के साथ एक हज़ार करोड़ रुपए की लागत से लघु सिंचाई परियोजनाओं को आगे बढ़ाने का विशेष प्रावधान भी इस बजट में है।

- भामाशाह भावस्थिरता कोश की स्थापना के लिए फंड

किसानों के लिए भामाशाह भावस्थिरता कोश की स्थापना के लिए फंड की व्यवस्था की गई है। मुख्यमंत्री जी ने पहले से ही धान, गेहूं, और अन्य फसलों के लिए एम.एस.पी. कला उपलब्ध कराई थी लेकिन आलू, टमाटर, प्याज, आदि फसलों में इस प्रकार की व्यवस्था नहीं थी जो कि इस बजट में कराई गई है।

- जैविक खेती

प्रदेश में अभी भी काफ़ी किसान जैविक खेती से जुड़े हुए हैं, जिनके लिए मुख्यमंत्री जी ने टेस्टिंग लैब के व्यवस्था की है। और अगले 5 वर्षों में संपूर्ण बुंदेलखंड खंड को जैविक खेती से जोड़ने का प्रावधान भी इस बजट में पेश किया गया है।

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- बीजों का वितरण

वर्ष 2021-2022 में 60.10 लाख क्विंटल बीजों का वितरण किया गया था और वर्ष 2022-2023 में इसकी मात्रा बढ़ाकर 60.20 लाख क्विंटल बीजों का वितरण किया जाएगा।

- नलकूप तथा लघु नहर

प्रदेश में 30,307 राजकीय नलकूपों तथा 252 लघु नहरों के माध्यम से मुफ़्त सिंचाई सुविधा की व्यवस्था की गई है।

- लघु सिंचाई परियोजना

मुख्यमंत्री लघु सिंचाई परियोजना के लिए एक हजार करोड़ रुपए की व्यवस्था की गई है।

- उर्वरक का वितरण

वर्ष 2021-2022 में कृषकों के लिए 98.80 लाख मीट्रिक टन उर्वरक का वितरण किया गया था तथा वर्ष 2022-2023 में 119.30 लाख मीट्रिक टन उर्वरक के वितरण का लक्ष्य रखा गया है।

- सोलर पंपों की स्थापना

कृषकों को सिंचाई के लिए डीजल विद्युत के स्थान पर ऊर्जा प्रबंधन के तहत ऊर्जा संरक्षण के लिए कृषकों के लिए सोलर पंपों की स्थापना की जाएगी।

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विपक्ष की ओर से बयान :

इस बजट पर विपक्ष की ओर से मायावती ने अपना बयान देते हुए कहा है कि, इस बजट से मुख्यमंत्री जी आम जनता की आंखों में धूल झोंक रहे हैं। उन्होनें आगे ट्वीट कर के कहा है कि "यूपी सरकार का बजट प्रथम दृष्टया वही घिसापिटा व अविश्वनीय तथा जनहित एवं जनकल्याण में भी खासकर प्रदेश में छाई हुई गरीबी, बेरोजगारी व गड्ढायुक्त बदहाल स्थिति के मामले में अंधे कुएं जैसा है, जिससे यहाँ के लोगों के दरिद्र जीवन से मुक्ति की संभावना लगातार क्षीण होती जा रही है।" उन्होंने आगे कहा है कि किसानों के लिए जो बड़े बड़े वादे किए गए थे, तथा जो बुनियादी कार्य प्राथमिकता के आधार पर करने थे वे कहां किए गए। 

वहीं कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि बीजेपी ने इतने बजट पेश किए है जिसमे केवल नंबर बढ़ाए गए है, इससे किसानों को कोई फायदा नही मिला है। बेरोजगारी और गरीबी अपनी चरम सीमा पर है। बजट के बारे में जो कुछ भी मुख्यमंत्री जी ने कहा है, उससे आम जनता और किसानों को कोई फायदा नही है। साथ ही वे कहते हैं उनके इन कामों से जनता का कोई फायदा नहीं होगा। वहीं यूपी के मुख्यमंत्री योगी जी ने बजट प्रस्तुत करने के बाद अपने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा है कि यह बजट 2022-2023 का है, जिससे यूपी की 25 करोड़ जनता का फायदा होगा और साथ ही यह बजट उत्तर प्रदेश के गरीब किसानों और नौजवानों की इच्छाओं को ध्यान में रख कर बनाया गया है। इसके अलावा उन्होनें कहा है कि यह बजट प्रदेश के उज्जवल भविष्य को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है।

भारत सरकार द्वारा लागू की गई किसानों के लिए महत्वपूर्ण योजनाएं (Important Agricultural schemes for farmers implemented by Government of India in Hindi)

भारत सरकार द्वारा लागू की गई किसानों के लिए महत्वपूर्ण योजनाएं (Important Agricultural schemes for farmers implemented by Government of India in Hindi)

हम जानते हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। हमारे देश की लगभग 60% से अधिक जनसंख्या कृषि पर निर्भर है और इसी से ही उनका जीवन यापन चलता है। 

इसी को देखते हुए भारत सरकार द्वारा किसानों के लिए बहुत सारी योजनाएं चलाई गई। जिससे किसानों की लागत कम लगे और किसानों की आय में वृद्धि हो सके। इन योजनाओं के माध्यम से किसानों को खेती में आने वाली समस्याएं कम होगी।

भारत सरकार द्वारा किसानों के लिए जरुरी योजनाएं

भारत सरकार द्वारा चलाई गई इन योजनाओं के माध्यम से किसान खेती बहुत ही आसानी और आधुनिक ढंग से कर सकेगा। आइए हम आपको भारत सरकार द्वारा किसानों के लिए लागू की गई कुछ महत्वपूर्ण योजनाओं की जानकारी देते हैं।

1. पीएम किसान सम्मान निधि योजना :-

भारत सरकार द्वारा किसानों के लिए लागू की गई योजनाओं में से प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (PM Kisan Samman Nidhi ) एक महत्वपूर्ण योजना है। 

इस योजना के तहत भारत के किसानों को साल में ₹6000 दिए जाते हैं जो कि ₹2000 की 3 किस्तों में दिए जाते हैं। योजना की शुरुआत वर्ष 2018 में की गई थी। 

इस योजना के अंतर्गत सरकार द्वारा अभी तक कुल 11 किश्तें जारी हो चुकी है। इस योजना के चलते भारत के किसानों की अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने में बहुत मदद मिली है।

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2. प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना :-

इस योजना के माध्यम से भारत सरकार द्वारा किसानों के लिए पेंशन की व्यवस्था की गई है। योजना में सरकार द्वारा उन किसानों के लिए पेंशन की व्यवस्था की गई है जो बुढ़ापे में असहाय हो जाते हैं और दूसरों पर निर्भर रहते हैं। 

ऐसे में जो किसान 60 वर्ष से अधिक की उम्र के हैं उन्हें सरकार न्यूनतम ₹3000 पेंशन देती है। “पीएम किसान मानधन योजना” का लाभ उठाने के लिए किसान को 60 वर्ष की आयु तक प्रतिवर्ष 55 से ₹200 तक जमा करने होते हैं। 

60 वर्ष की अवधि समाप्त होने के बाद किसान को पेंशन मिलनी शुरू हो जाती है। यदि किसी कारणवश किसान की मृत्यु हो जाती है तो किसान की पत्नी को 50% पेंशन दी जाएगी।

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3. पीएम कुसुम योजना :-

आजकल गांव में बिजली की समस्या बहुत ही गंभीर है। ऐसे में किसानों को समय पर बिजली ना मिल पाने के कारण उनकी फसलों को समय पर पानी नहीं मिल पाता जिससे फसलें में खराब हो जाती हैं। 

किसानों की इन्हीं समस्याओं को देखते हुए भारत सरकार द्वारा पीएम कुसुम योजना चलाई गई है। जिसके अंतर्गत किसानों को सोलर पैनल्स खरीदने पर सब्सिडी दी जाती है। जिससे किसान बिजली संबंधी अपनी समस्या को दूर कर सकें।

4. जैविक खेती योजना :-

इस योजना के अंतर्गत किसानों को जैविक खेती करने के लिए प्रेरित किया गया है। क्योंकि हम सभी जानते हैं कि वर्तमान में किसान कई प्रकार के रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं। 

जिसकी वजह से किसानों को विभिन्न प्रकार की बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में भारत सरकार द्वारा जैविक खेती को बढ़ावा देने के कई प्रयास किए जा रहे हैं इसके लिए भारत सरकार ने जैविक खेती योजना शुरू की। इस योजना में जो कृषक जैविक खेती करते हैं उसको सरकार द्वारा इनाम दिया जाता है।

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5. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना :-

खेती करना किसानों के लिए आसान नहीं होता। खेती में किसानों को कई प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है। 

इन प्राकृतिक आपदाओं जैसे ओलावृष्टि, बाढ़, तेज आंधी के कारण किसान की फसलें नष्ट हो जाती है जिससे उन्हें भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। 

इन सब समस्याओं के कारण सरकार द्वारा प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana MINISTRY OF AGRICULTURE & FARMERS WELFARE) लागू की गई है जिसके माध्यम से किसान को फसलों के लिए पीना की सुरक्षा मिलती है।

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सरकार द्वारा योजना लागू करने का उद्देश्य :-

हमारे देश में विभिन्न प्रकार के किसानों रहते हैं। सभी किसानों की आर्थिक स्थिति एक जैसी नहीं है इसके चलते कुछ किसान अमीर और कुछ किसान बहुत अधिक गरीब है। 

इन्हीं समस्याओं के कारण भारत सरकार द्वारा किसानों के लिए विभिन्न प्रकार की योजना चलाई गई हैं। जिसके माध्यम से सभी प्रकार के किसान अपने खेतों में अच्छी से अच्छी फसल उगा सकें और उनकी आर्थिक स्थिति सुधर सके।